Established on 9th January 1955 in Jamalpur, the Swastik flag of Ananda Marga now flies high in 180 countries. Celebrations at Baba Nagar, Amjhar, included 24-hour Akhand Kiirtan “Baba Nam Kevalam”, Narayan Bhoj for 5000 people, blanket distribution to 1000 needy individuals, and a free medical camp.
The event was inaugurated by Central Public Relations Secretary Acarya Kalyanmitrananda Avadhuta, who highlighted the life and contributions of Shrii Shrii Anandamurti. Various Acaryas and devotees also participated in the program.
आनंद मार्ग स्थापना दिवस उत्सव
मुंगेर जमालपुर से 9 जनवरी 1955 को स्थापित आनंद मार्ग का स्वास्तिक झंडा दुनिया के 180 देशों में अपना परचम लहरा रहा है
सबको एक साथ लेकर चलने में ही समाज की सार्थकता है
हर एक मनुष्य को शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र में विकसित होने का अधिकार है
अगर व्यक्ति का लक्ष्य समान है तो उनके बीच एकता लाना संभव है। आध्यात्मिक भावधारा का सृजन कर विश्व बंधुत्व के आधार पर एक मानव समाज की स्थापना को वास्तविक रूप दिया जाना संभव है।
आनंद मार्ग प्रचारक संघ की ओर से बाबा नगर ,अमझर आनंद संभूति मास्टर यूनिट परिसर में आनंद मार्ग प्रचारक संघ के स्थापना दिवस के अवसर पर 24 घंटे का “बाबा नाम केवलम् ” अखंड कीर्तन, लगभग 5,000 लोगों के बीच नारायण भोज ,1000 जरूरतमंदों के बीच कंबल का वितरण ,लगभग 1000 से भी ज्यादा लोगों को सात चिकित्सकों ने चिकित्सा कर दवा दिया। कार्यक्रम का उद्घाटन आनंद मार्ग प्रचारक संघ के केंद्रीय जनसंपर्क सचिव आचार्य कल्याणमित्रानंद अवधूत ने फीता काटकर किया इस अवसर पर आचार्य कल्याणमित्रानंद अवधूत ने कहा कि मुंगेर, जमालपुर से 9 जनवरी 1955 को स्थापित आनंद मार्ग का स्वास्तिक झंडा दुनिया के 180 देशों में अपना परचम लहरा रहा है उन्होंने कहा कि
श्री श्री आनंदमूर्ति जी का जन्म 1921 में वैशाखी पूर्णिमा के दिन बिहार के जमालपुर में एक साधारण परिवार में हुआ था। परिवार का दायित्व निभाते हुए वे सामाजिक समस्याओं के कारण का विश्लेषण उनके निदान ढूंढने एवं लोगों को योग, साधना आदि की शिक्षा देने में अपना समय देने लगे। 9 जनवरी सन् 1955 में मुंगेर जिला के जमालपुर में उन्होंने आनंद मार्ग प्रचारक संघ की स्थापना की। आज आनंद मार्ग 180 से भी ज्यादा देशों में अपने सेवा मूलक कार्य एवं आध्यात्मिक साधना के बल पर विभिन्न देशों में आध्यात्मिक संगठन के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुका है। संयुक्त राष्ट्र संघ से भी आनंद मार्ग यूनिवर्सल रिलीफ टीम को मान्यता मिल चुकी है । आनंद मार्ग प्रचारक संघ की स्थापना करने का उद्देश्य “बाबा “श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने समझा कि जिस जीवन मूल्य (भौतिकवाद) को वर्तमान मानव अपना रहे हैं वह उनके न शारीरिक व मानसिक और न ही आत्मिक विकास के लिए उपयुक्त है अतः उन्होंने ऐसे समाज की स्थापना का संकल्प लिया, जिसमें हर व्यक्ति को अपना सर्वांगीण विकास करते हुए अपने मानवीय मूल्य को ऊपर उठने का सुयोग प्राप्त हो। उन्होंने कहा कि हर एक मनुष्य को शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक क्षेत्र में विकसित होने का अधिकार है और समाज का कर्तव्य है कि इस अधिकार को ठीक से स्वीकृति दें। वे कहते थे कि कोई भी घृणा योग्य नहीं, किसी को शैतान नहीं कह सकते। मनुष्य तब शैतान या पापी बनता है जब उपयुक्त परिचालन पथ निर्देशन का अभाव होता है और वह अपनी कुप्रवृतियों के कारण बुरा काम कर बैठता है। यदि उनकी इन कुप्रवृतियों को सप्रवृतियों की ओर ले जाया जाए तो वह शैतान नहीं रह जाएगा। हर एक–मनुष्य देव शिशु है इस तत्व को मन में रखकर समाज की हर कर्म पद्धति पर विचार करना उचित होगा। अपराध संहिता या दंड संहिता के विषय में उन्होंने कहा कि मनुष्य को दंड नहीं बल्कि उनका संशोधन करना होगा। उनका कहना था कि सबको एक साथ लेकर चलने में ही समाज की सार्थकता है। यदि कोई यात्रा पथ में पिछड जाये, गंभीर रात की अंधियारी में जब तेज हवा का झोंका उसकी दीप को बुझा दे तो उसे अंधेरे में अकेले छोड़ देने से तो नहीं चलेगा। उसे हाथ पकड कर उठाना होगा अपने प्रदीप की रोशनी से उसे दीप शिखा को ज्योति करना होगा। अगर कोई अति घृणित कार्य किया है तो उसका दंड उसे अवश्य मिलेगा पर उससे घृणा करके उसे भूखे रख कर मार डालना मानवता विरोधी कार्य होगा। उनके विचारानुसार हर व्यक्ति का लक्ष्य एक ही है, सभी एक ही लक्ष्य पर पहुंचना चाहते हैं अपनी सूझ एवं समझदारी एवं परिस्थिति के अनुसार अलग-अलग रास्ता अपनाते हैं। कोई धनोपार्जन, कोई सेवा का पथ अपनाते हैं, लेकिन हर प्रयास के पीछे मौलिक प्रेरणा एक ही रहती है,शाश्वत शांति की प्राप्ति, पूर्णत्व की प्राप्ति । अगर व्यक्ति का लक्ष्य समान है तो उनके बीच एकता लाना संभव है। आध्यात्मिक भावधारा का सृजन कर विश्व बंधुत्व के आधार पर एक मानव समाज की स्थापना को वास्तविक रूप दिया जाना संभव है।
इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से आचार्य सूर्यनिरयाशानंद अवधूत,आचार्य अवनिंद्रानंद अवधूत,आचार्य रूद्रप्रकाशनंद अवधूत, आचार्य सतवीरानंद अवधूत , आचार्य रतनमुक्तानंद अवधूत , आचार्य पुष्पेंद्रनंद अवधूत अवधुतीका आनंदस्नेहमाया आचार्या ,आचार्य रामकृपानंद अवधूत तथा अन्य लोगों ने भी भाग लिया।