वर्तमान समय के मनुष्यो के सर्वांगीण विकास के लिए…..
युग प्रवर्तक श्री श्री आनंदमूर्ति का योगदान
मानव समाज बहुत सारी मान्यताओं एवं परम्पराओं को साथ लेकर आगे बढ़ता है।इस समय धर्म, राजनीति, पारिवारिक सम्बन्ध, सामाजिक आचार-विचार इत्यादि से संलग्न जो मान्यताएं हैं वे अपना व्यवहारिक मूल्य खोती जा रही हैं, और मानव समाज की प्रगति में बाधा बनकर खड़ी हो जाती है। अत्याधुनिक वैज्ञानिक उपलब्धियों के बावजूद विश्व मानव बुरी तरह भटक कर रह गया है। परिवार बिखरते जा रहे हैं। परिस्थितियों से घबरा कर आत्महत्या करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। तीसरे महायुद्ध का खतरा सर पर मंडरा रहा है। ऐसी बिषम परिस्थिति में समाज के शुभचिन्तक और विश्व के समाजशास्त्री एक नई सभ्यता के उदय होने की राह देख रहे हैं। हमारा विश्वास है कि युग मनीषी श्री श्री आनंदमूर्ति का सर्वव्यापी दर्शन "आनन्द मार्ग" मानव जाति को आत्मघाती भटकाव से बचाएगा। आपके समझने और समझाने के लिये इस दर्शन की कुछ बातें सारांश में यहां दी जा रही हैं।
“भजन, कीर्तन और साधना” :- अभी तक आध्यात्मिक दर्शन के नाम से षड्दर्शन की ही चर्चा की जाती रही है। किन्तु ये सभी दर्शन केवल पठन-पाठन, वाद-विवाद और एक तरह के बौद्धिक विलास तक ही सीमित रह गए हैं। मनुष्य के आध्यात्मिक विकास में इन दर्शनों का कोई उल्लेखनीय योगदान नहीं है। “आनन्दमार्ग दर्शन” ने इस कमी को पूरा किया है। धर्म के तीन आयाम होते हैं, भजन, कीर्तन और साधना। इन तीनों क्षेत्रों में आनन्द मार्ग दर्शन का अपना विशिष्ट योगदान है। मानव जाति के उत्थान में आदि गुरु भगवान शिव और श्रीकृष्ण की महत्वपूर्ण भूमिका है, और आनन्द मार्ग इसे पूरी तरह स्वीकार करता है और उन्हीं के अनुसार सम्पूर्ण चराचर जगत को परमपिता परमात्मा की अभिव्यक्ति मानता है। आनन्द मार्गी परिवार का हर एक सदस्य अपनी दिनचर्या से समय निकालकर प्रतिदिन सुबह शाम श्री श्री आनन्दमूर्ति के द्वारा प्रदत्त आध्यात्मिक साधना करता है। यह वही साधना है जिसे भगवान शिव और श्रीकृष्ण ने अपने शिष्यों को सिखलाया था। जिसे हमारे ऋषि मुनियों से लेकर स्वामी विवेकानन्द तक सभी ने किया था। और अपने प्रसुप्त देवत्व को जगा कर मन में छुपे परमात्मा से साक्षात्कार किया था। आनंद मार्ग के प्रवर्तक ने उसी आध्यात्मिक साधना को आधुनिक युग के अनुरूप ढाल दिया है। धार्मिक आडम्बरों से दूर आनन्द मार्ग की साधना पद्धति मनुष्य का सर्वांगीण विकास करती है। इसी परिपेक्ष्य में उन्होंने प्रभात संगीत के नाम से 5019 भक्ति गान दिया है और उन्होंने ही उनकी संगीत रचना भी की है। इसके अलावा श्री श्री आनंदमूर्ति जी के द्वारा दिया गया अष्टाक्षरी सिद्ध मंत्र “बाबा नाम केवलम” कीर्तन मानव जाति के लिए अभूतपूर्व वरदान है। ये भजन, कीर्तन और साधना साधक को मानसिक जगत से ऊपर उठकर आध्यात्मिक जगत की अनुभूति प्राप्त करने में सहायता करते हैं। आज की स्थिति यह है की सारी दुनिया में फैले हुए हजारों-लाखों स्त्री पुरुष धर्म और आध्यात्म के नाम पर परोसी गई आधी अधूरी मान्यताओं को तिलाञ्जलि देकर आनन्द मार्ग के आचार्यों के पास जाकर आनन्द मार्ग की साधना सीख रहे हैं और अपने प्रसुप्त देवत्व को जगा रहे हैं। सम्पूर्ण मानव जाति को नैतिक पतन की अंधी खाई में धकेलने को आतुर अपसंस्कृति के आत्मघाती मायाजाल से अपने परिवार के सदस्यों और बेटी-बेटियों को बचाने के लिए उन्हें भी आनन्द मार्ग की साधना सीखने की प्रेरणा दे रहे हैं।
“बुद्धि की मुक्ति:नव्य-मानवतावाद” :- यह दर्शन आनन्द मार्ग के सामाजिक दृष्टिकोण को दर्शाता है, अर्थात नव्य मानवतावाद वह आदर्श है जिसके अनुसार ही हमारी समस्त सामाजिक गतिविधियां परिचालित होनी चाहिए। इस धरती पर सैकड़ों महापुरुषों ने जन्म लिया और अपनी अपनी योग्यता अनुसार उन्होंने किसी न किसी दर्शन का प्रतिपादन किया लेकिन सम्पूर्ण जीव जगत (पेड़-पौधे, पशु-पक्षी और मानव जाति) को एक सूत्र में पिरो कर उन्हें सामूहिक कल्याण की ओर ले चलने वाले एक स्पष्ट, सुपरिभाषित और व्यवहारिक सामाजिक दर्शन देने का यह सम्भवतः पहला प्रयास है। हमारा विश्वास है कि यह दृष्टिकोण मानव जाति के सर्वांगीण विकास में मददगार साबित होगा और उसे जातिगत वैमनस्य तथा पर्यावरण की समस्याओं से छुटकारा दिलाएगा।
नव्य- मानवतावाद के अनुसार भक्ति अर्थात परमात्मा से प्रेम और निकटता ही हमारे जीवन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण धरोहर है जिसे हर हाल में सुरक्षित रखा जाना चाहिए। क्षेत्रीयतावाद, साम्प्रदायिकता, राष्ट्रवाद, जातिगत स्वाभिमान और इन जैसी जितनी भी विषैली मानसिकताएं हैं उन्हें भक्ति भावना से दूर किया जा सकता है। उदाहरणार्थ राष्ट्रवाद को लीजिए। इस धारणा ने एक नहीं वरन् दो-दो महायुद्धों को जन्म दिया जिसमें लाखों निरपराध लोग मार डाले गए। इसी मानसिकता के कारण आज भी सारी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है और तीसरे महायुद्ध की तलवार अभी भी हमारे सिर पर लटक रही है। नव्य-मानवतावाद विश्व सरकार की धारणा पर विश्वास करता है, राष्ट्रीयता के बदले हमारे ऋषि मुनियों द्वारा प्रदत्त “वसुधैव कुटुम्बकम्” की अवधारणा को स्वीकार करता है और समाज के प्रबुद्ध वर्ग और जनसाधारण को भी विश्व सरकार के निर्माण का महत्व समझा रहा है।
“नवीन सामाजिक-आर्थिक सिद्धान्त प्रउत” :- प्रगतिशील उपयोग तत्व (प्रउत) एक व्यवहारिक सामाजिक-आर्थिक सिद्धान्त है जो पूंजीवाद और साम्यवाद का विकल्प प्रस्तुत करता है। पूंजीवाद ने एकाधिकार (मोनोपोली) को जन्म दिया जिसके परिणाम स्वरुप अमीर और अमीर तथा ग़रीब और ग़रीब होते गए। इस आत्मघाती व्यवस्था में फंसकर लाखों लोगों ने आत्महत्या कर लिया है और यह भयावह सिलसिला आज भी जारी है। दूसरी ओर साम्यवाद ने पूंजीवाद का विरोध तो किया लेकिन उसने परमात्मा के अस्तित्व से ही इन्कार कर दिया। परिणाम स्वरूप साम्यवादी देशों के शासक अत्यधिक क्रूर हो गए और रोजी-रोटी की मांग करने वाले जन विद्रोह को दबाने के लिए करोड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया। आज जो स्थिति है उससे यह स्पष्ट है कि रूस और चीन साम्यवादी होने का दावा तो करते हैं लेकिन उन्होंने भी पूंजीवाद को अपना लिया है।
प्रउत दर्शन के पीछे सम्पूर्ण जीवन दृष्टि है जिसमें मनुष्य के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक, इन तीनों पहलुओं के सर्वांगीण विकास को ध्यान में रखा गया है जिसके अनुसार हवा, पानी और सूर्य की रोशनी की तरह समाज के प्रत्येक व्यक्ति की बुनियादी जरूरतों (भोजन कपड़ा आवास शिक्षा और चिकित्सा) को पूरा करना शासन का सर्वप्रथम कर्तव्य होगा, ताकि व्यक्ति अपने और अपने परिवार की अस्तित्व की चिन्ता से मुक्त होकर अपने मानसिक और आध्यात्मिक विकास की ओर ध्यान दे सके।
“भगवान शिव और श्री कृष्ण” :- आनन्द मार्ग प्रचारक संघ ने गुरूदेव के प्रवचन पर आधारित दो अत्यंत महत्वपूर्ण पुस्तकें प्रकाशित की है; “नमः शिवाय शान्ताय” और “नमामि कृष्ण सुंदरम”। भारतीय संस्कृति का सर्वाधिक दिलचस्प पहलू यह है कि परमात्मा स्वयं मनुष्य के रूप में इस धरती पर जन्म लेते हैं। भगवान शिव और भगवान श्री कृष्ण को लेकर जनमानस में दुनिया भर की भ्रांत धारणाएं फैली हुई हैं। इन दोनों पुस्तकों के माध्यम से इन महान विभूतियों को ऐतिहासिक पात्र के रूप में निरूपित किया गया है और उनके जीवन के अज्ञात पहलुओं को उजागर किया गया है। श्री श्री आनंदमूर्ति जी ने स्पष्ट लिखा है कि धरती के वर्तमान मानव समाज और सुदूर भविष्य के भी मानव समाज के सम्बन्ध में सुविचार करते हुए उसका यथार्थ इतिहास लिखते समय शिव को भूलने से काम नहीं चलेगा। भारत के अधिकांश तथाकथित बुद्धिमान लोग महाभारत को एक काल्पनिक घटना मानते हैं किन्तु उन्होने महाभारत काल में वर्णित महायुद्ध को ऐतिहासिक घटना निरूपित किया है और अपने प्रवचनों में भगवान श्री कृष्ण की जीवनी से सम्बन्धित बहुत से महत्वपूर्ण और अनजाने तथ्यों का उल्लेख किया है। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा है कि भगवान श्री कृष्ण का संदेश आज भी प्रासंगिक है। यह दुनिया एक कुरुक्षेत्र है और धर्म पर पर चलने वालों को विधर्मी लोगों के अन्याय और अत्याचार के खिलाफ सतत् संघर्षरत रहना चाहिए।
इसके अतिरिक्त आनंद मार्ग के प्रवर्तक ने इतिहास, राजनीति, नैतिकता, भाषा विज्ञान, योग मनोविज्ञान, यम-नियम जैसे अनेक विषयों पर अत्यन्त सारगर्भित और व्यावहारिक विचार व्यक्त किए हैं। सारांश यह है, कि मानव जीवन से सम्बन्धित ऐसा कोई भी प्रश्न नहीं है, जिसका उत्तर आनन्द मार्ग के साहित्य में उपलब्ध नहीं हो। मानवता अदम्य वेग से लगातार आगे बढ़ते रहने वाली एक गतिशील सत्ता है। दुनिया की कोई भी ताकत मानव जाति को धर्म के पथ पर प्रगति करने से नहीं रोक सकती। हमारा विश्वास है कि भारत से ही धर्म पर आधारित एक नई सभ्यता का जन्म होगा। यदि आनंद मार्ग की अवधारणा इस संभावना को साकार करने में निर्णायक भूमिका निभाए तो हो सकता है कि आपको आश्चर्य हो लेकिन हमें कदापि आश्चर्य नहीं होगा।
आनंद मार्ग आपका अपना संगठन है ।हमारी आपसे पुरज़ोर अपील है कि
आनंद मार्ग संगठन के उद्देश्य और इसके पैगाम को समझें। इसकी योग साधना पद्धति को सीख कर अपने तनाव ग्रस्त जीवन से मुक्ति पाएं, मानसिक शक्ति प्राप्त करें और अपने प्रसुप्त देवत्व को जगाएं। इसके साथ ही साथ भारतीय संस्कृति और धर्म पर आधारित शोषणविहीन समाज की स्थापना के उद्देश्य को सामने रखकर इस संगठन के हजारों सन्यासी और गृहस्थ मार्गी जो सेवा मूलक और धर्म प्रचार का कार्य कर रहे हैं उससे जुड़ें। उसमें अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें और यथासंभव योगदान देकर अपने जीवन को सार्थक बनाएं।
आनंद मार्ग प्रचारक संघ
राजाधिराज योग केंद्र
आनंदधारा आराजीलाइन साधुघाट
अदलपुरा चुनार रोड जिला मिर्जापुर पिन कोड 231304
मोब. न.9455838456